भारत में बौद्ध शिक्षा : एक ऐतिहासिक अवलोकन
भारत में बौद्ध शिक्षा : एक ऐतिहासिक
अवलोकन
लेखक
डॉ राजेश मौर्य
सहायक प्राध्यापक अर्थशास्त्र
शासकीय नेहरू महाविद्यालय
सबलगढ़ जिला मुरैना
Email - dr.rajeshmourya1973@gmail.com
सार:- बौद्ध धर्म, जोकि 600 ईसा पूर्व में, अस्तित्व में आया था, एक महत्वपूर्ण धर्म है,
जिसकी शिक्षाएं, भगवान बुद्ध, के उपदेशों पर, आधारित ऐसी हैं, जो मानव या
विद्यार्थी के, व्यक्तित्व विकास से लेकर, सर्वांगीण विकास (शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक,
आध्यात्मिक) पर आधारित है। इसमें, विशेष रूप से, ज्ञान (परम ज्ञान) मन की, शुद्धता,
पुनर्जन्म (आपके दुखों का, कारण पुनर्जन्म है, अर्थात अपने पिछले जन्म में, जो
कर्म किए हैं, उसी का फल है।) मोक्ष या निर्वाण पर, विशेष बल दिया गया है।
ऐतिहासिक
रूप से, बौद्ध शिक्षा का, आरंभ तब हुआ था, जब प्राचीन भारत में, गुरुकुल शिक्षा
प्रणाली संचालित थी, जोकि, कई प्रकार की, सामाजिक बुराइयों जैसे:-धर्म, कर्मकांड, न्स्लिय
भेदभाव, जातिवाद, (जिसमें उच्च जाति का, व्यक्ति ही, शिक्षा प्राप्त कर सकता था,
विशेष रूप से, ब्राह्मण वर्ग) आदि। ऐसा अनुमान है कि, इसके लिए, समाज का, सबसे
उच्च वर्ग, ब्राह्मण जिम्मेदार था। परिणामस्वरुप शिक्षा के, क्षेत्र में, भारतीय
समाज में, एक जबरदस्त धार्मिक क्रांति शुरू हुई, जिसे बौद्ध शिक्षा या धर्म या
बौद्ध दर्शन कहा जाता है। और, एक निष्पक्ष, पारदर्शी एवं समानता, के आधार पर,
शिक्षा प्रणाली का, उदय हुआ था क्योंकि इसमें (बौद्ध शिक्षा) किसी भी, जाति, संप्रदाय या धर्म का,
व्यक्ति, शिक्षा प्राप्त कर सकता था। अर्थात भेदभावपूर्ण शिक्षा प्रणाली का,
उन्मूलन हुआ और समानता पर, आधारित, शिक्षा प्रणाली का, जन्म हुआ था, जिसके प्रमाण,
नालंदा तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे बौद्ध शिक्षा, विश्वविद्यालय हैं।
यह
शोध पत्र, भारत में, बौद्ध शिक्षा प्रणाली के, ऐतिहासिक पक्ष, पर आधारित है,
जिसमें हम, बौद्ध शिक्षा को, समझते हुए, यह जानने का, प्रयास करेंगे कि, कौन-कौन
से, विद्वानों व विश्वविद्यालय ने, इसके (बौद्ध शिक्षा) विकास में, अपना योगदान
दिया है।
मुख्य बिंदु:-बौद्ध शिक्षा की अवधारणा, जन्म, चीनी विद्वान, भारतीय
विश्वविद्यालय।
प्रस्तावना:-प्राचीन भारत
में, लगभग 600 ईसा पूर्व में, बौद्ध धर्म, अस्तित्व में
आया था, जिसके प्रवर्तक, भगवान बुद्ध (बचपन में गौतम बुद्ध) थे। लेकिन ऐतिहासिक
दस्तावेजों से, यह पता चलता है कि, यह (बौद्ध) धर्म, कोई अलग धर्म या पंथ नहीं था,
बल्कि हिंदू धर्म के, भीतर का, संप्रदाय था। ऐसा अनुमान है कि, बौद्ध धर्म, हिंदू
धर्म के, भीतर, एक सुधार आंदोलन के, रूप में, उभरा था जैसा कि मैक्स मूलर ने,
अपने लेख में, स्पष्ट किया है कि-भारत में, उत्पन्न हुआ, बौद्ध धर्म, मेरे
विचार से, कोई अलग धर्म नहीं था, बल्कि, भारतीय मन का, अपने विभिन्न रूपों जैसे:-धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक और राजनीतिक में, एक
स्वाभाविक विकास का, प्रतीक था।(1) परंतु, इस धर्म में, शिक्षा का, स्तर प्राचीन
भारत को, ध्यान में रखते हुए, कहीं अधिक उत्तम था, क्योंकि बौद्ध शिक्षा प्रणाली, मानवीय गुणों या सद्गुणों पर,
आधारित, सभी जातियों के, व्यक्तियों के लिए, एक समान थी अर्थात समावेशिता, निष्पक्षता तथा
धर्मनिरपेक्षता जैसे, सिद्धांतों पर, आधारित थी।
सामान्य शब्दों में, बौद्ध शिक्षा, भगवान बुद्ध के, उपदेशों पर,
आधारित शिष्यों या विद्यार्थियों के, सर्वांगीण विकास (शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक) पर आधारित है। डॉ.एंड्रयू शास्त्री (2022) ने अपने पेपर
में, उल्लेख
किया है कि-बौद्ध शिक्षा का, लक्ष्य, परम ज्ञान, प्राप्त करना है क्योंकि, यह ज्ञान ही, आपको मोक्ष या निर्वार्ण
प्राप्त करने में, मदद प्रदान करेगी। इसका (बौद्ध शिक्षा) उद्देश्य विद्यार्थियों
का, व्यक्तित्व विकास या सर्वांगीण विकास करना है।(2) प्राचीन भारत में, इसे (बौद्ध
शिक्षा) सबसे उत्तम माना जाता था क्योंकि उस समय की, शिक्षा, समाज में, संचालित
चार वर्गों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्य, शुद्ध) के, अनुसार भेदभाव, पर आधारित थी।(3)
इसमें ब्राह्मण का, वर्चस्व था, इसलिए शिक्षा संबंधी, सभी
अधिकार, उनके (ब्राह्मणों) के पास थे। शेष सभी वर्ग, शिक्षा संबंधी अधिकार से
वंचित थे।
प्राचीन भारत में, जैसे ही, बौद्ध शिक्षा प्रणाली, अस्तित्व में
आई, वैसे ही, समाज में, व्याप्त शिक्षा प्रणाली में, व्यापक स्तर पर, बदलाव आया था
क्योंकि शिक्षा प्राप्त करने, के दुआर, सभी (किसी भी जाति या संप्रदाय) के लिए,
खोल दिए गए थे, या हम यह कह सकते हैं कि, समानता पर, आधारित, शिक्षा प्रणाली का, प्रादुर्भाव
हुआ था। यदि, हम, यह कहे कि, प्राचीन भारत में, बौद्ध शिक्षा प्रणाली ने, एक
विशेष शिक्षा प्रणाली की, नींव रखी थी, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।(4)
यह शोध पत्र, भारत में, बौद्ध शिक्षा, एक ऐतिहासिक अवलोकन, पर
आधारित है, जिसमें हम, यह समझने का, प्रयास करेंगे कि, प्राचीन भारत में, बौद्ध
शिक्षा की, शुरुआत कैसे हुई थी?, इसके विकास में, कौन-कौन से, विद्वानों ने, अपना
योगदान दिया था। तथा यदि, आज यह शिक्षा, हमारी सामान्य शिक्षा प्रणाली में,
संचालित होती तो, क्या-क्या परिवर्तन दृष्टिगोचर हो सकते थे?
बौद्ध शिक्षा प्रणाली, अवधारणा तथा
परिभाषाएं
बौद्ध शिक्षा, जोकि, पूर्ण रूप से, भगवान बुद्ध के, उपदेशों पर,
आधारित है, मैं सबसे अधिक, भारत की, प्राचीन भाषा, पाली का, उपयोग किया गया है। जिसके
कई अर्थ हैं, पाली सिहाली शब्दकोश के अनुसार-बौद्ध शिक्षा में, जिस भाषा,
पाली को, शामिल किया गया है, का अर्थ, प्रशिक्षण, अध्ययन तथा अनुशासन प्राप्त करना
है।(5) आपको यह, जानकर, आश्चर्य होगा कि, बौद्ध शिक्षा के, दृष्टिकोण से, यह
शिक्षा, पाली भाषा के, सिक्खा शब्द से, आया है। इसीलिए हम बार-बार, सिक्खा शब्द का,
उपयोग करेंगे। बौद्ध शिक्षा में, सिक्खा शब्द, के अंतर्गत, मानवीय गुणों का,
उल्लेख, मनुष्य के, सद्गुणों से, लेकर, अच्छा आचरण व अनुशासनात्मक आचरण, के रूप
में, व्यक्त किया गया है। इसे (सिक्खा), अनुशासन के, नियम भी, कहा जाता है। लेकिन,
जब हम, इस शब्द, (सिक्खा) को, बौद्ध शिक्षा, के संदर्भ में, देखते हैं तो, इसका
(सिक्खा) मतलब, एक ऐसा अनुशासन, के मार्ग का, चयन करना है, जो व्यक्तियों को, सभी
दुखों से, निजात दिलाकर, संतुष्टि या मुक्ति या मोक्ष की, अवस्था में, पहुंचाया जा
सके।(6)
बौद्ध शिक्षा में, पाली भाषा के, शब्द (सिक्खा) में, मूल रूप से,
तीन तत्व शामिल हैं। जैसे:-अधिशिक्षा सिक्खा, अधिचित्र सिक्खा एवं अधिपन्न (सिक्खा)
आदि। बौद्ध शिक्षा में, अधिशिक्षा सिक्खा, के अंतर्गत, आमतौर, पर यह स्पष्ट करती
है कि, इसमें सर्वोच्च नैतिकता या अनुशासन शामिल है। जिनका पालन करने के लिए, बौद्ध, भिक्षु 8 पवित्र उपदेश, 5
पवित्र उद्देश्य एवं 10 पवित्र उपदेशों का, नियमित रूप से, पालन करते हैं।(7) इनका पालन, इसलिए किया जाता है, ताकि, बौद्ध भिक्षु, चोरी,
डकैती से, लेकर, लोगों की, हत्या, दुराचार, झूठ ना बोलना एवं नशीले
पदार्थ, इत्यादि सामाजिक बुराइयों से, दूर रह सकें, जबकि अधिचित्र सिक्खा में,
उच्चतम मन या ध्यान को, प्राप्त करने की, वकालत की गई है। क्योंकि इससे, उनके
बौद्ध भिक्षु या शिष्यों, के दुखों का, अंत हो सकता है। शेष शिक्षा, अर्थात अधिपन्न
शिक्षा, के अंतर्गत, ज्ञान या परम ज्ञान की, प्राप्ति की, बात की गई है। यह, इस
संदर्भ में, है कि, सभी जीवन, अपने कर्मों के, स्वामी हैं। आपको बता दें कि, बौद्ध
शिक्षा में, शामिल किए गए, इन तीन सिक्खो को, त्रि-सिक्खा के, नाम से, जाना जाता
है। इसीलिए, इसे त्रि-सिक्खा कहा गया है कि, इन तीनों का, पालन करना, प्रत्येक
बौद्ध भिक्षु, के लिए, अनिवार्य है, क्योंकि यह भिक्षुयों को, निर्वाण या ज्ञानोदय,
प्राप्त करने में, अपनी मुख्य भूमिका अदा, करता है। और सभी प्रकार के, दुखों को,
समाप्त करता है।
बौद्ध शिक्षा की, विभिन्न विद्वानों ने, परिभाषाएं,
इस प्रकार दी हैं।
ए.रारिच्क चार्ल्स (2007) के अनुसार-उन्होंने, अपनी परिभाषा में, बौद्ध शिक्षा के, अंतर्गत, यह
स्पष्ट किया है कि, इसका मुख्य उद्देश्य, व्यक्तित्व विकास एवं बौद्ध धर्म पर,
विशेष रूप से, अपना ध्यान आकर्षित करना है।(8)
बौद्ध शिक्षा की, परिभाषा में, एक शब्द, जिसका नाम, विनय है का,
प्रयोग किया गया है। जिसका अर्थ, मूलरूप से, अनुशासन या दुर्गुणों का, उन्मूलन
करना है। इस संदर्भ में, एस.विल्सिन और हेवाविताराना (1929) ने, अपनी
परिभाषा में, उल्लेख किया है कि-बौद्ध शिक्षा
में, विभिन्न प्रकार के, नियम हैं, जैसे मौखिक, शारीरिक, मानसिक व अनुशासन
आदि, जिन्हें विनय, कहा जाता है।(9) बौद्ध शिक्षा में, यह स्पष्ट रूप से, उल्लेख
है कि, ये नियम, (अनुशासन) ही, नहीं बल्कि वासना, क्रोध व अज्ञान, जैसी सभी,
सामाजिक बुराइयों को, समाप्त करने में, मददगार साबित हो सकते हैं।
पी.पीली और हेवाविताराना (1950) के अनुसार-किसी भी, विद्यार्थी या भिक्षु, के संदर्भ में, बौद्ध शिक्षा,
एक ऐसा तरीका है, जो संपूर्ण शारीरिक एवं मानसिक अनुशासन, के माध्यम से,
आध्यात्मिक शुद्धता प्राप्त करने में, सहायक सिद्ध हो सकता है।(10)
पी.ए.पयुत्तो (2011) के अनुसार-बौद्ध शिक्षा, विशेष रूप से, अध्ययन, प्रशिक्षण, विचार, समझ, आत्म विकास व अभ्यास, के
बारे में, है और जब तक, आप, इन घटकों में, महारथ हासिल नहीं कर लेते हैं, तब तक,
अध्ययन या विषय क्षेत्र में, पूर्णत विकसित नहीं कर पाते हैं।(11)
वें.मेदियावे पिअराथ्मा तेरो (2017) के अनुसार-बौद्ध शिक्षा, वह शिक्षा है, जिसके अंतर्गत, व्यक्तियों के,
विभिन्न दुखों को, समाप्त करके, संतुष्टि प्राप्त करना अर्थात मोक्ष, या मुक्ति के
लिए, मार्ग प्रसस्त करना है।(12)
उपरोक्त परिभाषाओं के, आधार पर, यह कहा जा सकता है कि, बौद्ध
शिक्षा, वास्तव में, शिष्यों या विद्यार्थियों के, सर्वांगीण एवं व्यक्तित्व विकास,
(शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, दया, आध्यात्मिक) पर बल देते हुए, उन्हें (शिष्यों) को,
मानवीय गुणों जैसे:-उदारता, सद्गुण, अनुशासन, विनय, उत्तम चरित्र आदि से, ओतप्रोत करने में, अपनी महत्वपूर्ण भूमिका
अदा करती है। यह स्पष्ट करती है, कि, कैसे, एक शिष्य या व्यक्ति, अनुशासन में रहते
हुए, अपने सभी दुखों को, समाप्त करके, मोक्ष या निर्वाण की, प्राप्ति करता है। यह
(बौद्ध शिक्षा) बौद्ध धर्म के, उपदेशों पर, विशेष जोर देती है, ताकि वह, कुछ
सामाजिक बुराइयां जैसे:-चोरी, डकैती, झूठ, हत्या, नशीले पदार्थ आदि से दूर रह सके। इस प्रकार, बौद्ध
शिक्षा, व्यक्तियों या शिष्यों, के सर्वांगीण विकास से, लेकर मानवीय गुणों, पर
आधारित है।
भारत में बौद्ध शिक्षा।
ऐतिहासिक रूप से, भारत में, बौद्ध शिक्षा का, काल या अवधि, 600 ईसा पूर्व से, 1200 ईसा पूर्व के, बीच माना जाता
है। लेकिन, हम सर्वप्रथम, बौद्ध शिक्षा से, पूर्व, भारतीय शिक्षा प्रणाली कैसी थी,
को समझने का, प्रयास करेंगे, तत्पश्चात बौद्ध शिक्षा के, ऐतिहासिक परिपेक्ष्य पर,
दृष्टि डालेंगे।
मुझे, यह महसूस होता है कि, अधिकांश इतिहास, विषय का, अध्ययन
करने वाले छात्र, यह बात अच्छी तरह से, जानते व समझते होंगे की, प्राचीन भारत में,
भारतीय शिक्षा प्रणाली, कैसी थी और कितनी समस्याओं व भेदभावपूर्ण थी, प्राचीन भारत
में, सामाजिक स्तरीकरण, के अंतर्गत, चार वर्ण या वर्ग थे, जैसे:-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्ध आदि। इनमें से,
ब्राह्मण वर्ग ही, ऐसा था, जिसके पास, शिक्षा संबंधी अधिकार थे, या हम, यह कह सकते
हैं कि, प्राचीन शिक्षा प्रणाली में, ब्राह्मणों का, वर्चस्व था। मिस्टर दहिया
(2016) ने अपने लेख में स्पष्ट किया है कि, प्राचीन भारत में, वैदिक या ब्राह्मण शिक्षा प्रणाली, 5000 ईसा पूर्व से, 200 ईसा पूर्व, तक, संचालित रही
थी, जिसमें अनेक
बुराइयां जैसे:-कर्मकांड, धर्म पर बल, दर्शन पर जोर, महिलाओं व शुद्धो को, शिक्षा
से, वंचित रखना, आदि।(13) यही नहीं, बल्कि सामाजिक आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक
इत्यादिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया था। इन कारकों (सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक,
राजनीतिक) को, इसलिए शामिल किया गया है, क्योंकि यह तभी, प्राप्त किया जा सकते हैं,
जब, वह शिक्षित हो, शिक्षा के, अभाव में, व्यक्ति का, जीवन अंधकार, में होता है। यही
कारण है कि, प्राचीन भारत में, एक धार्मिक क्रांति शुरू हुई और एक, नया सिद्धांत
या प्रणाली विकसित हुई, जिसे, हम बौद्ध शिक्षा या बौद्ध दर्शन कहते हैं।
बौद्ध शिक्षा या बौद्ध दर्शन से, प्राचीन भारत में, शिक्षा के,
क्षेत्र में, जबरदस्त सुधार आंदोलन के कारण, समाज में, व्यापक स्तर पर, बदलाव आया
और शिक्षा संबंधी, कई केन्द्रों का, उदय हुआ था। ऐसा अनुमान है कि, बौद्ध धर्म
के, उदय के, कारण, बौद्ध शिक्षा प्रणाली का, शुभारंभ होने से, भारत की, संस्कृति
एवं सभ्यता के, सभी पहलुओं में, प्रगति हुई थी।(14) क्योंकि बौद्ध शिक्षा
प्रणाली, समानता पर, आधारित थी। अर्थात किसी भी, धर्म, संप्रदाय या जाति का,
व्यक्ति, इसमें (बौद्ध शिक्षा) प्रवेश ले सकता था। यह शिक्षा, विशेष रूप से, गौतम
बुद्ध, जो बाद में, भगवान बुद्ध, कहलाए थे, के उपदेशों पर, आधारित थी, जिसमें
बच्चों या शिष्यों का, व्यक्तित्व विकास, से लेकर, सर्वांगीण विकास पर, मुख्य रूप
से, बल दिया गया था।(15)
प्राचीन भारत में, बौद्ध शिक्षा को, बढ़ावा देने में, न केवल,
साधारण (आम लोगों) का हाथ रहा है, बल्कि उस समय, जितने भी, व्यापारी एवं राजा थे,
का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ऐसा अनुमान है कि, इन व्यक्तियों (व्यापारियों
एवं राजाओं ने) विभिन्न बौद्ध मठों की, स्थापना की, थी और इनके माध्यम से, शिक्षा
प्रदान करने का, कार्य किया जाता था। अर्थात भारत में, विभिन्न बौद्ध मठ, उच्च
शिक्षा के, केंद्र बन गए थे।(16) और विभिन्न बौद्ध भिक्षुओं द्वारा, यह शिक्षा
प्रदान की जाती थी, क्योंकि, इस शिक्षा, (बौद्ध शिक्षा) में, ध्यान का, विशेष
स्थान है। इसीलिए बौद्ध धर्म के, भिक्षुओं ने, जंगलों में, जीवन यापन का,
रास्ता चुना तथा विभिन्न मठों या बौद्ध विश्वविद्यालय में, अध्ययन करने वाले,
विद्यार्थियों या शिष्यों को भी, इस रास्ते का, चयन करने के लिए, प्रोत्साहित किया
था।(17) लेकिन फिर भी, इस शिक्षा प्रणाली (बौद्ध शिक्षा) में, कुछ कमी थी, और,
वह यह थी, कि प्रारंभिक काल में, यह शिक्षा, केवल विभिन्न मठों या बिहारो तक ही
सीमित थी, परंतु बाद में, यह शिक्षा, (बौद्ध शिक्षा) आम लोगों के, लिए, खोल दी गई
थी। अब, हर, वह व्यक्ति, फिर वह चाहे मजदूर हो या फिर आम, सभी, बौद्ध मठों में,
शिक्षा प्राप्त कर सकते थे। सभी के लिए, शिक्षा प्राप्त करने के, द्वार खोलने से,
समाज में, विधमान, एक वर्ग अर्थात, अमीर वर्ग ने, इस शिक्षा, (बौद्ध शिक्षा) को,
स्वीकार कर दिया था, जो भी, हो परंतु, बौद्ध शिक्षा, सभी लोगों, मजदूर/श्रमिक वर्ग,
के लिए, खोलने से, शिक्षा के, क्षेत्र में, एक प्रकार की, समानता की, स्थिति
निर्मित हुई थी, जो मेरे विचार से, एक अति-उत्तम पहल कहीं जा सकती है, क्योंकि,
शिक्षा पर, किसी एक वर्ग का, अधिकार नहीं होना चाहिए बल्कि, सभी के लिए, एक समान
होना चाहिए।
प्राचीन भारत में, बौद्ध शिक्षा के, प्रचार-प्रसार में, चीनी
बौद्ध भिक्षुओं का भी, अहम योगदान रहा है। उन्होंने (चीनी बौद्ध भिक्षुओं) बौद्ध
शिक्षा के, सिद्धांतों को, विभिन्न, प्राचीन अभिलेखों के, माध्यम से, बौद्ध शिक्षा
को, बढ़ावा देने का, कार्य किया था। चीनी विद्वान या बौद्ध भिक्षु, भारत में, 5वी
और 7वी शताब्दी में, आए थे। उन्होंने, खतरनाक लंबी, व कठिन यात्राएं की थी, और
भारत के, कोने-कोने में, बौद्ध शिक्षा का, प्रचार-प्रसार किया था।(18) इन
विद्वानों (चीनी विद्वानों) में, फाह्यान, हवेन त्सियांग एवं इत्सिंग आदि विद्वान
थे। फाह्यान, जोकि, 339 ईसा पूर्व से, 414 इसा पर्व के,
बीच, भारत आया था, ने अक्सर अपने लिख में, बार-बार, बौद्ध शिक्षा का उल्लेख किया
है। 639 ई. से 645 ई. के बीच, हवेन त्सियांग (चीनी विद्वान) भारत आया, ने बौद्ध
धर्म की, शिक्षाओं को, मानवीय गुणों से, ओंतप्रोत बताते हुए, उसकी (बौद्ध शिक्षा)
लोकप्रियता का, उल्लेख किया है। इसी प्रकार, इत्सिंग, जो 673 ई. से 600 ईस्वी तक, भारत
आया था, ने भी, बौद्ध धर्म से, संबंधित शिक्षा के, कुछ उज्ज्वल, पहलुओं पर, प्रकाश
डाला था।(19)
यदि, हम, बौद्ध शिक्षा के, पाठ्यक्रम की, बात करें, तो यह पता चलता है कि, इसमें, कृषि से, लेकर, डेयरी फार्मिंग, हस्तकला, शिल्पकला, बुनाई-कढ़ाई, वाणिज्य, सैन्य प्रशिक्षण,
इत्यादि मुद्दे या विषय शामिल थे। इसके अलावा, बौद्ध शिक्षा में, शिष्यों या
बच्चों को, पूर्ण रूप से, सामाजिक रूप से, ओतप्रोत, निर्मित किया जाता था क्योंकि,
यह शिक्षा, (बौद्ध शिक्षा) बातचीत पर, अधिक थी। इस प्रकार की, शिक्षा में,
प्रवेश लेने वाले, ऐसे विद्यार्थी, जिनकी उम्र 8 वर्ष होती थी,
प्रथम दीक्षा समारोह आरंभ, होता था, जिसे, एक बौद्ध
धर्म में, पब्बजा कहते हैं।(20)
प्राचीन काल में, भारत में, कुछ उच्च शिक्षा संबंधी
विश्वविद्यालय संचालित थे। जैसे:-जगदल्ला, नादिया, बल्लभगढ़, उदंतपूरी, विक्रमशिला एवं तक्षशिला
आदि, ऐसा अनुमान है कि, यह बौद्ध शिक्षा के, प्रमुख, उच्च शिक्षा संबंधी, केंद्र थे,
जहां अनेक, विदेशी देशों जैसे:-जावा, कोरिया, तिब्बत व चीन से, शिक्षा अर्जित करने
हेतु, भारत की ओर, रुख करते थे।(21)
भारत में, बौद्ध शिक्षा को, प्रोत्साहित करने में, प्राचीनकाल
का, नालंदा विश्वविद्यालय, का भी, महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसे, अधिकांश भारतीय,
बौद्ध शिक्षा का, विश्वविद्यालय भी कहते थे। इस महान, प्राचीन बौद्ध
विश्वविद्यालय की, स्थापना 427 ईस्वी में, मगध वंश के, महान सम्राट, कुमार गुप्त प्रथम ने, की
थी, और 427 ई. से 1197 ई. तक, बौद्ध शिक्षा का, सतत रूप से, विकास जारी रहा था।(22) यह, उस समय, बौद्ध शिक्षा से, संबंधित, विश्वविद्यालय इतना
अधिक प्रसिद्ध था कि, एशिया एवं यूरोप, महाद्वीप से, सर्वाधिक छात्र, शिक्षा
प्राप्त करने के लिए, हमारे देश की ओर, पलायन करते थे। इसीलिए नालंदा
विश्वविद्यालय को, प्राचीन काल में, अंतरराष्ट्रीय स्तर का, विश्वविद्यालय भी, कहा
जाता था।
प्राचीन भारतीय नालंदा विश्वविद्यालय, जिसे बौद्ध शिक्षा का, एक
विशेष विश्वविद्यालय, कहा जाता था, के बारे में, एक महान चीनी बौद्ध भिक्षु, जुआनजौंग
ने, कहा था कि-इस विश्वविद्यालय में, लगभग 10000 विद्यार्थी एवं 2000 शिक्षक थे,
कक्षा खंड, इतना अधिक बड़ा था कि, एक साथ 100 छात्र बैठेते थे, जिसमें बौद्ध
धर्म से, लेकर, बौद्ध दर्शन, गणित, शरीर रचना, खगोल विज्ञान
आदि विषयों को, पढ़ाया जाता था।(23) इसके
साथ ही, इस (नालंदा) विश्वविद्यालय में, छात्रावास की भी, सुविधा थी, जिसमें (छात्रावास) तीन
मंजिल पर, कमरे बने हुए थे। प्रथम तल पर, नवीन छात्र, द्वितीय तल पर, द्वितीय वर्ष
के, छात्र और सबसे ऊंची मंजिल (शीर्ष स्थल पर) वरिष्ठ छात्र रहते थे।(24) एक अन्य
चीनी विद्वान, जुआंग त्सांग ने, नालंदा विश्वविद्यालय के, महत्व को, स्पष्ट करते
हुए, लिखा है कि-प्राचीन भारतीय नालंदा विश्वविद्यालय में, उस समय, प्रवेश
प्राप्त करना, आसान नहीं था, क्योंकि इसके लिए, (प्रवेश) एक विशेष प्रवेश परीक्षा,
आयोजित की जाती थी, जोकि विश्वविद्यालय के, द्वारपाल लेते थे। इसके साथी ही,
अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए, केवल 20% ही, प्रवेश का,
प्रावधान था।(25) इससे स्पष्ट होता है कि,
प्राचीन काल में, भारत का, नालंदा विश्वविद्यालय, बौद्ध शिक्षा, के क्षेत्र में,
कितना अधिक अहम था, इसके अलावा, एक और चीनी भिक्षु, जिनका नाम, यिजिंग था,
ने, नालंदा विश्वविद्यालय की, प्रशासनिक प्रक्रिया, के बारे में, लिखा है कि-बौद्ध
शिक्षा, के संबंध में, जब भी, कोई सभा या बैठक होती थी, तो उसमें अधिकांश, बौद्ध
भिक्षुओं, के साथ, सर्वसम्मति से, निर्णय लिया जाता था। यदि किसी भिक्षु, के पास,
कोई व्यावसायिक विचार, होता था तो, उस पर, विचार-विमर्श करके, सभी अधिकारियों व
कर्मचारियों के, बीच, प्रचार-प्रसार किया जाता था। यदि एक भी, अधिकारी को, इससे (मुद्दे
विचार) से कोई, समस्या होती थी तो, वह सभा में, पारित नहीं होता था।(26,27,28)
इस प्रकार कहा जा सकता है कि, भारत में, व्यापक स्तर पर, बौद्ध
धर्म एवं शिक्षा को, विशेष महत्व दिया गया था। इसीलिए हमारे, प्राचीन विश्व
विद्यालयों, तक्षशिला,
नालंदा, जगदल्ला, विक्रमशिला को, बौद्ध शिक्षा के, संबंध में, अंतरराष्ट्रीय स्तर
का, दर्जा प्राप्त था।
निष्कर्ष
उपरोक्त विवरण, के आधार पर, निष्कर्ष के, रूप में, कहा जा सकता
है कि, भले ही, भगवान बुद्ध का, जन्म हिमालय की, तराई, कपिलवस्तु, नेपाल में हुआ, लेकिन उनके (भगवान बुद्ध)
सिद्धांत और शिक्षा संबंधी विचारों का, प्रचार-प्रसार, जितना अधिक भारत में हुआ था,
उतना और किसी देश में, नहीं हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि, भारतीय भूमि से,
उत्पन्न या प्रचारित हुआ, धर्म, आज विश्व के, अनेक देशों में, फैल गया है, परंतु इसकी (बौद्ध धर्म) धरोहर
आज भी भारत में, वैसे ही, कायम है, और विभिन्न भारतीय संग्रहालय में, सुरक्षित रूप
से, संरक्षित है।
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